Sunday, September 17, 2017

अद्भुत माँ भद्रकाली की गुफा


💜भारतीय लोकसंस्कृति का अनोखा नजारा💜

💜एक ऐसा भी ट्रिप एक पन्थ दो काज 💜




उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जिले का कांडा  तहसील का कुमाऊँ मंडल  



उत्तराखंड की कुमाऊँनी लोकसंस्कृति की प्रमुख धरोहर है छलिया नृत्य जो पूरे कुमाऊँ की संस्कृति की सम्पूर्ण विश्व में पहचान दर्शाती है। यह जगह बेहद खुबसुरत है।कुमाऊँ के मुख्य नगर हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, यहाँ की मुख्य नदियाँ गोरी, काली, सरयू, कोसी, रामगंगा इत्यादि हैं। काली शारदा नदी भारत तथा नेपाल के मध्य प्राकृतिक सीमा है।कैलाश-मानसरोवर का मार्ग इसी नदी के साथ जाता है कुमाऊँ का मौसम सुहावना होता है। बाहरी हिमालय श्रंखला में मानसून में भीतरी हिमालय से दुगुनी से भी अधिक वर्षा होती है
अदभुत  

माँ भद्रकाली, मन्दिर उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जिले कांडा तहसील के अतर्गत आता  है।



मां भद्रकाली शक्ति स्थल-1086 साल पुराना है मां  वैष्णव रूप में पूजा जाता है 


मंदिर के नीचे स्थित हजारों साल पुरानी गुफा है शोध का विषय
 बागेश्वर से तीस किमी की दूरी पर कांडा क्षेत्र में घने जंगलों के बीच मां भद्रकाली का प्राचीन मंदिर है। मंदिर में स्थित शिलापट से पता चलता है कि मंदिर एक हजार साल से भी अधिक पुराना है।
भद्रकाली मंदिर में वैष्णव शक्ति रूप में हैं। जिस वजह से यहां पर मां की महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। तीन रूपों में पूजा होने के कारण इस स्थान को परम वैष्णवी स्थान माना जाता है।
यहां पर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्राय: मां जगदम्बा के मंदिर तथा शक्ति स्थल पहाड़ी शिखरों पर ही स्थित हैं लेकिन यह मंदिर अन्य शक्ति स्थलों के विपरीत चारों ओर शिखरों के बीच घाटी में स्थित है।
इसके चारों ओर की पहाडिय़ों पर धौलीनाग, फेणीनाग, बेरीनाग, वाशुकीनाग देवता के मंदिर स्थापित हैं। इस मंदिर के नीचे से भद्रा नदी बहती है।नदी का प्रवाह पथ 300 मीटर में भूमिगत है। जिससे मंदिर के नीचे एक प्राकृतिक गुफा बनी है जो कि हजारों साल पुरानी है। गुफा के अंदर चट्टान पर अलग-अलग कलाकृतियां बनी हुई हैं। गुफा शोधकर्ताओं के लिए शोध का विषय है। गुफा में स्थित कुंड में श्रद्धालु स्नान करते हैं। माना जाता है
कि इस कुंड में स्नान करने से दैवीय तथा भौतिकीय बाधाओं से छुटकारा मिलता है। इसी स्थान पर मां के चरणों की पूजा की जाती है। इसी के साथ शिव तथा शक्ति का सम्मिलित रूप एक-दूसरे के आधार रूप में हैं।

Monday, September 11, 2017

मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार सरिता

✽महाराजा श्री अजमीढ़ जी✽



✽मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष श्री अजमीढ़ जी महाराज✽

राजस्थान के प्रसिद्ध शहर अजमेर,बसाकर मेवाड़ की नींव रखने वाले महाराज अजमीढ़ जी, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष,ऐसा कहा जाता है कि महाराज अजमीढ़, ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न अत्री की 28वीं पीढ़ी में त्रेता युग में जन्मे थे। वे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के समकालीन ही नहीं बल्कि उनके परम मित्र भी थे।  महाराजा अजमीढ़ जी के पिता श्री हस्ति थे, जिन्होंने महाभारत काल में वर्ण‍ित हस्तिनापुर नगर को बसाया था।   प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल, बल्कि देश का प्रमुख राजनैतिक एव सामाजिक केंद्र रहा। कालांतर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिए प्रसिध्य कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि महाराजा अजमीढ़ देव जी धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे, और उन्हें खिलौने तथा आभूषण बनाने का बेहद शौक था। अपने इसी शौक के चलते वे अनेक प्रकार के खिलौने, बर्तन और आभूषण बनाकर उन्हें अपने प्रियजनों को भेंट किया करते थे। उनके इसी शौक को उनके वंशजों ने आगे बढ़ाकर व्यवसाय के रूप में अपना लिया। तभी से वे स्वर्णकार के रूप में जाने गए और आज तक आभूषण बनाने का यह व्यवसाय उनके वंशजों द्वारा जारी है। अजमीढ़ देव जी एक महान क्षत्रिय पराक्रमी राजा  थे। शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ला १५) के दिन, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज द्वारा आदि पुरुष  महाराज अजमीढ़जी की जयंती मनाई जाती है।