✽आरती अजमीढ़ जी की ✽
आरती कीजै अजमीढ़ राजा की। सेवा निरन्तर की अपने प्रजा की॥महाराज हस्तीजी के घर जाए। हस्तीनापुर के जनक गए बनाए॥शरद पूर्णिमा का दिन भाग्यशाली। मां सुदेशा के घर आयी खुशहाली॥यशोधरा से जन्मे द्विमीढ़ पुरुमीढ़ भाई। मैढ़ क्षत्रिय वंश की स्वर्ण ध्वजा लहराई॥स्वर्णकारी कला का शुरु किया काम। जिससे गौरवान्वित हुआ समाज का नाम॥अजयमेरु में एक नगर बसाया। स्वर्ण बंधुओं के कार्य क्षेत्र को बढ़ाया॥इस दिन को मनाएं हर समाज के भाई। करें अर्चना पूजा, बांटे फल-फूल मिठाई॥समस्त समाज बंधुओं की विनती करें स्वीकार। अजमीढ़ देव ही करेंगे, हम सब की नैया पार॥
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