✽श्री शाकम्भरी माता✽
✽गोत्र ✽ कांदला,
✽कुलदेवी ✽माता शाकम्भरी
✽माता शाकम्भरी देवी दुर्गा के अवतारों में से एक हैं✽
✽पहला प्रमुख श्री शाकम्भरी माता मन्दिर, गाँव सकराय सीकर राजस्थान✽
पहला प्रमुख राजस्थान सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है। श्री शाकम्भरी माता गाँव सकराय यह आस्था केन्द्र सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावटी के सीकर जिले में यह मंदिर स्थित है।दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका,भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है
✽दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है✽

शाकम्भरी देवी का प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर जिले के सांभर कस्बे में अवस्थित है। शाकम्भरी माता सांभर की अधिष्ठात्रीदेवी है और इस शक्तिपीठ से ही इस कस्बे ने अपना यह नाम पाया। सांभर पर चौहान राजवंश का शताब्दियों तक असधिपत्य रहा। 12वि शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में चौहानों का राज्य था। यहाँ सांभर झील शाकंभरी देवी के नाम पर प्रसिद्ध है। महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था

और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे। इसी स्थान पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ सम्पन्न हुआ था। देवयानी को समर्पित एक मंदिर झील के पास स्थित है। इतिहास के अनुसार चौहान वंश शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी ईं में सांभर झील और सांभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की। सांभर सातवीं शताब्दी ई. तक अर्थात् वासुदेवी के राज्यकरल से १११५ ई. उसके वंशज अजयराज द्वारा अजयमेरू दुर्ग या अजमेर की स्थापना कर अधिक सुरक्षित समझकर वहां राजधानी स्थानांतरित करने तक शाकम्भरी इस यशस्वी चौहान राजवंश की राजधानी रही। सांभर की अधिष्ठात्री और चौहान राजवंश की कुलदेवी शाकम्भरी माता का प्रसिद्ध मंदिर सांभर से लगभग 15 कि.मी. दूर अवस्थित है। सांभर के पास जिस पर्वतीय स्थान में शाकम्भरी देवी का मंदिर है वह स्थान कुछ वर्षों पहले तक जंगल की तरह था और घाटी देवी की बनी कहलाती थी। समस्त भारत में शाकम्भरी देवी का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यही है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी। शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में सांभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है।
✽तीसरा मां शाकंभरी का मंदिर बेहट, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश ✽

उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस सिद्धपीठ में बने माता के पावन भवन में माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी व शताक्षी देवी की नौ देवियों में से, एक हैं मां शाकंभरी देवी। कल कल छल छल बहती नदी की जल धारा ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विराजती हैं माता शाकंभरी। कहा जाता है शाकंभरी देवी लोगों को धन धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना करने वालों का घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।

शाकंभरी देवी के मंदिर में माता शाकंभरी के दाईं ओर भीमा और भ्रामरी और बाईं और शीताक्षी देवी प्रतितिष्ठित है भारत की शिवालिक पर्वत श्रेणी में माता श्री शाकंभरी देवी का प्रख्यात तीर्थस्थल है। दुर्गा पुराण में वर्णित 51 शक्तिपीठों में से एक शाकंभरी सिद्धपीठ जिले के शिवालिक वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है। यहां की पहाड़ियों पर पंच महादेव व भगवान विष्णु के प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं। इस पावन तीर्थ के आसपास गौतम ऋषि की गुफा, बाण गंगा व प्रेतसीला आदि पवित्र स्थल स्थापित हैं। यहां वर्ष में तीन मेले लगते हैं, जिसमें शारदीय नवरात्र मेला अहम है। शिवालिक घाटी में माता शाकंभरी आदि शक्ति के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह में माता शाकंभरी, भीमा, भ्रांबरी व शताक्षी देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि सिद्धपीठ पर शीश नवाने वाले भक्त सर्व सुख संपन्न हो जाते हैं। यह भी मान्यता है कि मां भगवती सूक्ष्म शरीर में इसी स्थान पर वास करती हैं। जब भक्तगण श्रद्धा पूर्व मां की आराधना करते हैं तो करुणामयी मां शाकंभरी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भक्तों के कष्ट हरती हैं।
✽कथा✽
पुराणिक कथा के अनुसार शाकुम्भरा देवी ने 100 वर्षो तक तप किया था और महिने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था । ऐसी निर्जीव जगह जहाँ पर सौ वर्ष तक पानी भी नहीं था। वहाँ पर पेड़ और पौधे उत्पन्न हो गये। यहाँ पर साधु-सन्त माता का चमत्कार देखने के लिये आये। और उन्हें शाकहारी भोजन दिया गया इसका तात्पर्य यह था कि माता केवल शाकहारी भोजन का भोग ग्रहण करती है और इस घटना के बाद से माता का नाम शाकम्भरी माता पड़ा। पुराणिक कथा के अनुसार यहाँ पर शंकराचार्य आये और तपस्या की थी। शाकम्भरी देवी तीन देवी ब्रह्मीदेवी, भीमादेवी और शीतलादेवी का शक्तिरूप है ।
✽शाकम्भरी देवी की आरती ✽
हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो शताक्षी दयालु की आरती कीजोतुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मांशाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मांशिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मांइच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मांशाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मांबस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावेशाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो।
✽✽✽✽
0 comments:
Post a Comment